जानें हिंदू धर्म के अनुसार मांस खाना पाप है या नहीं? गीता में मांस के बारे में क्या लिखा है? कब आप मांस खा सकते है।

शाकाहार या मांसाहार इन दोनों में से इंसानों के लिए उपयुक्त भोजन क्या है सदियों से इस विषय पर बहस चला आ रहा है ।

 एक तरफ मांस खाने वाले लोग शाकाहारियों को घास खाने वाला बताते है तो वही शाकाहारी लोग मांस खाने वालों को जानवरो पर अत्याचार करने वाला बताते है ।
हम वेद एवं श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से समझने की कोशिश करेंगे कि मांसाहार भोजन हम कर सकते हैं या नहीं || 
एवं मांस खाने वाला या खिलाने वाला दोनों में से अधिक पापी कौन है ||
वेदों में मांस खाने को स्पष्ट रूप से मना किया गया || ऋग्वेद के मंडल 10 सुख सिध्याशी की रिचा 16 में कहा गया है की जो मनुष्य नर अश्व या किसी अन्य पशुओं का मांस का सेवन करता है या उसे अपने शरीर का भाग बनाता है गऊ माता की हत्या कर अन्य लोगों को दूध इत्यादि से वंचित रखता है तो ऐसे लोग पाप के भागीदार बनते है ।
अगर हम बात करें भगवत गीता की तो गीता के 17वे अध्याय के आठवें श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं जो भोजन सात्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है वह भोजन आयु बढ़ाने वाला जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल स्वास्थ्य सुख तथा तृप्ति बढ़ाने वाला होता है यह सात्विक भोजन कहलाता है अगर हम इस श्लोक को मानें तो सात्विक आहार को श्रेष्ठ बताया गया है 
इसी के अगले श्लोक अर्थात श्लोक संख्या 9 में श्री कृष्ण कहते हैं जब शाकाहारी भोजन अत्यधिक गर्म अत्यधिक खट्टा अत्याधिक मिर्च मसाले , नमकीन के साथ बनाए जाते हैं तो वह भोजन राजसिक बन जाता है ऐसा भोजन मनुष्य अपनी भूख शांत करने के लिए नहीं अपितु अपनी तृष्णा को शांत करने के लिए खाता है तो वह भोजन सात्विक से राजसिक बन जाता है ||
इसी के अगले श्लोक अर्थात श्लोक संख्या 10 में श्री कृष्ण कहते हैं जो भोजन अधपका , रस रहित , दुर्गंध युक्त एवं अपवित्र हो वह भोजन तामसिक पुरुषों को प्रिय होता है 
अर्थात अगर हम तामसिक भोजन करते हैं तो हम अधिक गुस्से वाले हिंसक एवं उत्तेजित व्यक्ति के रूप में उभरेंगे ।
हमारे प्राचीन ग्रंथों , प्रकृति और मनुष्य पर शोध करने वाले ऋषि मुनियों के अनुसार धरती पर सभी जीवो को भगवान का अंश माना गया है और इनमें से किसी भी जीव की हत्या करना शास्त्रों के अनुसार पाप है ||
 और मांसाहार भोजन के लिए रोजाना न जाने कितनी ही जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है तो मांस खाना कहां से पुण्य हुआ || 
मांसाहार एक तामसिक भोजन है और मांस केवल वही खाते हैं जो राक्षस होते हैं || मांस खाने वाले व्यक्ति कुकर्मी , रोगी एवं आलसी किस्म के होते हैं , इस प्रकार से अगर देखा जाए तो मांस खाने वाला एवं खिलाने वाला दोनों ही पापी होते हैं क्योंकि मास केवल वही खिलाता है जो मांस खाता है || 
  सनातन धर्म में हम जैसा खाओगे अन्न वैसा हो जाएगा मन जैसी पद्धति में विश्वास रखते हैं इसलिए मित्रो आज से ही आप एक प्रण लीजिए की आप केवल शाकाहारी भोजन ही करेंगे और मांसाहार का त्याग करेंगे ।

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